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रतनगढ - कहानी दो जहां की अंतिम भाग (भाग 23)

हाँ निहारिका समर ने चारो ओर देखते हुए कहा। निहरिका चारो ओर ध्यान से देखती है वहाँ उसे बस एक मिट्टी की हाथ भर की मूर्ति दिखती है। निहारिका समर चौकन्ने से उस गुफा का हर कोना छान मारते हैं। लेकिन उन्हे कुछ नजर नही आता। 


यहाँ तो कुछ नजर नही आ रहा है सिवाय इस मुर्ति के क्या आप बता सकते हैं ये मुर्ति है किसकी? क्युंकि ये हमे अलग ही लग रही है या शायद पुरानी हो गयी इसीलिये साफ समझ नही आ रहा। 

समर ने बिन उसकी ओर देखे कहा – गढ वाले महाराज की है यह निहारिका। और वह तेजी से वहाँ से हर दीवार की ओर देखने लगा। निहारिका के मन को खटका हुआ आखिर गढ वाले महाराज की मूर्ति वहाँ क्यूं आयेगी और।

वह उसके पास पहुची। उसने वहाँ की जमीन को घूरते हुए देखा। उसने हाथ से धूल साफ की लेकिन कुछ नही था।आसपास देखने लगी और फिर कुछ सोचते हुए समर से बोली – हो न हो इस मूर्ति मे ही कुछ न कुछ गड़बड़ है।

समर बोला – रतनगढ मे एक गढ वाले महाराज की मूर्ति ही ऐसी है जिसे कोई छेड़ नही सकता। फिर इसमे क्या गड़बड़ हो सकती है। 
निहारिका विश्वास मे भरकर कहने लगी – वो इसीलिये समर, देखो इस जगह को, क्या यहाँ देख कर ऐसा लग रहा है कि गढ वाले महाराज की आराधना की जाती हो, क्युंकि हम भी यहाँ हमारी बहनो के साथ आये थे गढ वाले महाराज की मन्नत पूरि करने। तब मम्मी ने हमे बताया गढ वाले महाराज को हमे नील कमल के साथ एक फूलो की चादर और खुद गढ वाले महाराज का श्रंगार कराना है फूलो का। इससे हमे यह तो समझ आ गया कि इन्हे फूल बेहद प्रिय है किंतु अब आप ही हमे बताओ इस गुफा को देखकर कहीं भी ऐसा लग रहा है कि यहाँ फूलो के अवशेष बचे हुए हैं। तुम ध्यान दो तो तुम पाओगे गुफा तीन ओर से पत्थर से बंद है ऐसे मे गुफा मे सड़न पैदा करने वाले कीटाणु का अभाव ही है। क्युंकि वे कारगर नमी मे ही होते हैं।
और दूसरी बात ये है कि जब रतनगढ के गढ वाले महाराज की मान्यता देश व्यापी है फिर उनका ऐसा तिरस्कार वह भी रतनगढ में कि उनकी मूर्ति की कोई आराधना तक न करे उन्हे इस गुफा मे छोड़ कर भाग जाये, क्या ये वाकई सामान्य बात है?

निहारिका को सुन कर समर का माथा ठनका। उसे निहारिका की बात किसी भी तरह से गलत नही लगी। निहारिका ने वह मूर्ति उठाई और उसे हिला डुला कर देखने लगी। उसे सब कुछ सामन्य ही लगा किंतु फिर भी कुछ और न नजर आने पर वापस आते हुए वह मूर्ति ही साथ लाने लगी। बंदर उन्हे रास्ता दिखाते हुए वहाँ से आगे चलने लगा। वह कुछ ही कदम वहाँ से वापस निकल पाए थे कि तभी उनके कानो मे बंदर के चिंचिया कर भागने की आवाजे पड़ी। समर ने तुरंत अपनी श्रवण शक्ति का उपयोग किया और उसने आसपास ही गुफा मे सुराग देखने लगा। पूरी गुफा मे कही भी सुराख नही था। निहारिका और समर तेजी से अपने चारो ओर देख रहे थे वे समझ गये थे अर्धमानव वहाँ आ चुके हैं। उनके कारण ही बंदर इस तरह चिंचिया रहा है।

 निहारिका और समर ने एक दूसरे की तरफ देखा उन्हे सिवाय भागने का कोई और चारा समझ नही आया। निहारिका ने वह मूर्ति अपने हाथो मे कस ली और उन्होने एक सीधी दौड़ लगा दी। वे सभी बंदर मे उलझे थे निहारिका और समर एक दूसरे का हाथ थाम कर बहुत तेजी दौड़ने लगे। दौड़ते हुए वे बमुश्किल किसी को नजर आये और दाये बाये होते हुए आखिर वे उनके बीच से निकलने लगे। एक अर्धमानव का ध्यान भटका और उसने निहारिका पर आक्रमण कर दिया।
 निहारिका के हाथो और गले पर निशान पड़े और मुर्ति उसके हाथो से फिसल कर नीचे गिर गई। जैसे ही मूर्ती नीचे गिरी वह बिखर गयी और वहाँ एक सुनहरी दिखने वाली चाबी नजर आने लगी। सुनहरी चाबी के नजर आते ही वे सभी अर्धमानव हिनहिनाते हुए वहाँ से भागने लगे। निहारिका और समर उन्हे काफी दूर तक भागते हुए देख कर उनके ऐसा करने का कारण समझते रहे किंतु उन्हे कुछ समझ नही आया आखिर ऐसा क्यूं हुआ। असमंजस मे खड़ी निहारिका के कानो मे बंदर के चिंचियाने के स्वर पड़े। उसने तुरंत पीछे मुड़ कर देखा। समर और वह दोनो ही उसके पास पहुंचे। वह अपनी आखिरी सांसे गिन रहा था। उसे देख कर निहारिका का कोमल हृदय रो पड़ा उसकी आंखे आंसुओ से भर गयी। वह बंदर आखिर मे उन्हे बचाते बचाते अपने प्राण त्याग चुका था। समर और निहारिका ने उसे उसे वहीं पत्थरो और मिट्टी के ढेर बना कर दबा दिया और एक बार फिर अपने चारो ओर देखने लगे। नीचे देखने पर समर जी नजर उस चमक पर पड़ी तब उसने निहारिका को उसकी ओर इशारा किया। निहारिका ने देखा तो उसके पास कर उसे उठाया।
उसके जेहन मे अचानक ही उस बंद दरवाजे का ख्याल घूम गया। 
शायद हम जानते है इसे कहाँ लगाना है, चलो समर हमे चलना चाहिये वहाँ - कहते हुए वह वापस बढ गई। रस्ते भर दोनो मे से कोई कुछ नही बोला दोनो ही अपने मन मे उन बंदरो के त्याग की घटना को स्मरण कर रहे थे। जब निहारिका एक बार फिर उस दरवाजे के पास पहुंची तब समर ने उसे कुछ देर ठहरने का कह वह किताब लाकर दी। निहारिका ने दरवाजे को ध्यान से देखा। उस पर किताब वाली जगह पर एक आकृति बनी हुई थी। वो राजसी मोहर का चिन्ह था। निहारिका ने उस चिन्ह वाले पेज को किताब मे तलाशा और उसे हूबहू उठाकर वहीं फिट कर दिया। इसके बाद उसने उस चमकती चाबी को उसकी जगह पर रखा और हल्का सा दवाब देते हुए उसे घुमाया। बेहद धीमी कड़ाक की आवाज हुई और वह धीरे धीरे हिला। निहारिका ने हल्का सा दवाब दिया तो वह दरवाजा आवाज करते हुए खुल गया। उसके खुलने भर की देर थी पैलेस के उस कमरे मे फैला धुंधलापन समाप्त हो गया। और एक तेज प्रकाश उस कमरे मे व्याप्त हो गया। संध्या का समय था गढ वाले महाराज के धाम मे मौजूद लोग अचानक वह बंद दरवाजा खुलने से बुरी तरह घबरा गये। पैलेस के दूसरे हिस्से मे भयानक आवाजे गूंजने लगी। निहारिका उन आवाजो के चीखने कराहने की वजह जानने के लिये उस ओर बढ गयी। वह एक बार फिर तहखाने के पास पहुंची। तहखाने के अंदर के नजारे को देखकर उसके होश फाख्ता हो गये। तहखाना पूरी तरह पीली रोशनी से भरा हुआ था। और वे सभी अर्ध मानव उसकी ओर ही देख रहे थे किंतु इस बार उनकी आंखो मे गुस्सा नही कृतज्ञता थी शायद वह ये समझ गये थे कि शापित जिंदगी मे रहने की चाह उन्हे इंसान और जानवर के बीच हमेशा ऐसे ही झुलाती रहती। कुछ ही पलो में वे सभी आंखो से ओझल हो गये। निहारिका को समर का ख्याल आया और वह चीखते हुए उसके पास भागी।
समर तुम ठीक हो.... कहते हुए वह दरवाजे पर ही आधी झूल गयी। समर अभी एक बुजुर्ग के और उस औरत के साथ खड़ा हुआ था जिससे निहारिका पहले भी मिल चुकी थी।
निहारिका ने सवालिया नजरो से समर की ओर देखा। समर ने कहा – तुम्हारे मन मे सवालो का जकीरा था निहारिका तुम अपने सारे सवालो के जवाब इनसे पूछ सकती हो?
निहारिका ने उन बूढे पंडित की ओर देखा। वे निहारिका की ओर देख कर मुस्कुराये। निहारिका ने याद करते हुए कहा – आप वही है को उस दिन हमे मिले थे, जिन्होने हमे बताया था कि हम यहाँ किसी खास मकसद को पूरा करने के लिये आये हैं। हमे याद आ रहा है ऐसा... निहारिका ने अपने दिमाग पर जोर डाला तो वह बूढा पंडित मुस्कुरा दिया। 
वह अपनी ओजस्वी वाणी से कहने लगा – हां, इसमे कोई शक नही है कि मै वही हूं, क्युंकि मै व्यक्ति का स्पर्श कर उसके कई जीवन के बारे मे जान सकता हूं। और उस दिन भी मै जान गया था कि तुम राजकुमारी हीर का पुनर्जन्म हो। इसीलिये तुम्हे अक्सर हीर नाम सुनाई देता रहता है। तुम अक्सर इस महल मे आती हो और कालिंद्री के साथ दिखती हो। 
निहारिका उस बूढे पंडित की एक एक बात पर आश्चर्य प्रकट कर रही थी क्युंकि वे जो कह रहे थे उसके बारे मे उसने किसी से भी बात नही की यहाँ तक कि अपने माता पिता से भी नहीं...। 
निहारिका बोली – लेकिन हम राजपंडित जी को बाबा क्यूं बुलाते हैं? 
उन्होने कहा - कालिंद्रि के साथ पले बढे होने के कारण। तुम और कालिंद्री दोनो ही बचपन मे एक साथ रहती थीं। तुम पड़ोसी राज्य कुम्भनगढ की राजकुमारी थी। किंतु तुम्हारे पिता और कुंवर समरजीत के पिता का आपस मे युद्ध हुआ और तुम्हारे पिता उस युद्ध मे परास्त हो गये। तब महाराज तुम्हे अपने राज्य ले आये और तुम्हारा पालन पोषण राजपंडित जी के घर मे किया जाने लगा। उस समय तुम्हारी आयु बहुत कम थी और कालिन्द्री की संगत के कारण तुम उसके रिश्तो को अपनाने लगी। उस समय सारे राजपरिवार के बच्चे एक साथ रहते थे। फिर कुछ और युवा होने पर तुम्हारे समरजीत के बीच आकर्षण बढने की झलक महाराज ने महसूस की और तुम दोनो का सम्बंध निश्चित कर दिया। बाकी की कहानी तो तुम जानती ही हो। वे रूकते हुए उसके अगले सवाल का इंतजार करने लगे।
लेकिन कुंवर वीर जीत सिन्ह ने हमे कालिन्द्री क्यूं कहा? जबकि किताब मे कालिंद्री जरिया बनेगी ऐसा लिखा हुआ था फिर हीर क्यूं? वह अभी भी समझ नही पा रही थी।
बूढे पंडित बोले –क्युंकि तुम्हारा चेहरा कालिंद्री का है लेकिन आत्मा हीर की। महागुरु जी के श्राप को एक बार फिर याद करो निहारिका। उन्होने कहा था तुमने पूरे मन से अनुनय की है श्राप निवारण के लिये इसिलिये इसे खत्म तुम ही करोगी।
समझ गये हम निहारिका बोली। उसने उस औरत की ओर देखा जो अभी भी हल्की सी मुस्कुराहट अपने चेहरे पर रखे हुए थी, बोली – और वे बंदर अवश्य ही राजपंडित के परिवार से थे उन्होने कहा भी था वैसा।
उस औरत ने सहमति मे अपनी पलके झुका दी तो निहारिका ने समर की ओर देखा उसे याद आया समर भी उनमे से एक था फिर ये कैसे सुरक्षित है? 
किंतु समर अभी कैसे सुरक्षित है...?. वह पूछने ही वाली थी…
ये भी तुम्हारी वजह से। समर की सारी बुरी ताकते तुम्हारी अच्छाई मे मिल चुकी है। तुम्हे याद है जब तुम समर से पहली बार मिली थी इसी अंधेरे हिस्से मे तब तुम्हे और समर दोनो को चोट लगी थी एकसाथ। उस पल एक चमत्कार और हुआ था। ये बात सर्वविदित है बुराई कभी भी अच्छाई पर विजय प्राप्त नही कर सकती। बुराई का अंश अगर अच्छाई, किसी पवित्र आत्मा मे मिलता है तब वह अपने स्वरूप को छोड़ देता है।यही समरजीत के साथ हुआ। उसी पल से समरजीत दोबारा अर्धमानव नही बन सका। और जब वह अर्धमानव नही रहा तब फिर उसके मुक्त होने का प्रश्न ही नही उठता। ये कुदरत का न्याय है इसे स्वीकार करने मे ही सबका हित है - कहते हुए वे मुस्कुराये और जाने लगे। 
निहारिका बोल पड़ी – लेकिन हमे एक बात और जाननी थी वे अर्धमानव रतनगढ के हर घर मे क्यूं हमला करते थे और घरो के आगे वह लेप क्यूं लगा रहता है?
लेकिन उन्होने नही सुना और वहाँ से चले गये। उनके जाने के बाद वह औरत भी सदा खुश रहो का आशीष देकर चली गयी। उसके पीछे पीछे एक बंदर और उछ्लता हुआ जाने लगा।
समर अब तुम ही हमारे सवालो के जवाब दे दीजिये आखिर ऐसा क्यूं करते थे वे? 
समर गम्भीरता से बोला – क्यूंकि वे रतनगढ की हर कन्या के खून की गंध से तुम्हे पहचानने की कोशिश किया करते थे। क्युंकि उन्हे ऐसा लगता था कि तुम रतनगढ मे ही दोबारा जन्म लोगी। 
किंतु ऐसा नही हुआ – निहारिका ने अपने शब्दो को पूरा किया। 
हां, समर ने संक्षिप्त मे कहा।
लेकिन हमारी बहने... कहते हुए उसने सवालिया नजरो से समर की ओर देखा।
समर ने कहा – वे सही सलामत है और महल के उस हिस्से मे है जहाँ आपने वह किताब पढी। किंतु उनका अपहरण जिसने किया उन्हे सजा दी जा चुकी है।
क्या मतकब कुंवर सा....? निहारिका हैरत मे पड़ी।
उनका अपहरण किसी ओर ने किया जिनसे आप रेलयात्रा के दौरान भिड़ी थी। पूछताछ के दौरान उन्होने अपना जुर्म कबूल कर लिया है। और अब तुम्हारी बहने सुरक्षित हैं। चलकर उनसे मिल लो तुम – कहते हुए समर वहाँ से आगे बढ गया। आगे बढने पर निहारिका ने देखा सब कुछ सही होने के बाद महल का वह हिस्सा अब काफी खूबसूरत दिख रहा था। 
समर उसे एक कमरे मे लेकर गया जहाँ उसकी दोनो बहने चुपचाप बैठी थी। “मान्या, छुटकी” निहारिका के आवाज देने पर वे दौड़ कर उसके पास चली आई। काफी देर तक वे तीनो गले लगी रहीं। 
जब वे सामान्य हो गयी तब तीनो ने समर को धन्यवाद दिया और धर्मशाला की ओर आने लगी। समर ने उन्हे धर्मशाला छोड़ने के लिये कहा और उसके साथ चलने लगा।
निहारिका, तो अब तुम जाओगी, लेकिन क्या मै जान सकता हूं कहाँ?
हां, अभी हम हमारे घर जायेंगे और फिर वहाँ से रहगंज के लिये निकलना है। वहां हमारी नियुक्ति हुई है आर्किटेक के पद पर – कहते हुए निहारिका खामोश हो गई।
ठीक, समर ने कहा और वह सामने देख कर चलने लगा। कुछ ही देर मे वे सभी एक बार फिर धर्मशाला के अंदर मौजूद थे। निहारिका, मान्या और छुटकी ने अपना सामान व्यवस्थित किया। वहीं कुंवर समरजीत को खुद अपने बीच जान कर वहाँ की प्रजा ने उन्हे घेर लिया।
कुंवर को अपने पास देख सभी को आश्चर्य के साथ बेहद खुशी महसूस हो रही थी। कुंवर भी बिन किसी झिझक के उनसे बातचीत करते हुए उनकी जिज्ञासाओ का जवाब देते रहे।
कुछ ही देर मे धर्मशाला मे किसी के चिल्लाने की आवाज आने लगी। समर के साथ साथ वाकी सभी का ध्यान अचानक से उस आवाज की तरफ गया। सभी ने मुड़ कर देखा। धर्मशाला के अहाते मे उन्हे दो प्रौढ व्यक्ति आते हुए दिखे। उन्हे देख समर कुछ सोचते हुए उसके पास चला आया। वे बार बार निहारिका, सारिका और मान्या कहते हुए आवाज दे रहे थे। समर को ये समझते देर न लगी कि वे निहारिका के मम्मी पापा है। वा उनके पास आकर उनसे बातचीत करने लगा और उन्हे निहारिका के बारे मे बताते हुए उनके कक्ष तक ले गया। जहाँ निहारिका उनसे मिल कर बहुत खुश हुई। उन्होने निहारिका को उन्हे न बताने और अकेले ही सबकुछ करने के लिये बहुत डांटा। लेकिन जव उन्हे समर के कुंवर होने का पता चला तब वे शांत होते मुस्कुराने लगे। कुछ ही देर मे कुंवर ने उन्हे बताया गढ वाले महाराज की संध्या आरती आज निहारिका के हाथो से होगी वे खुशी से फूले नही समाये। निहारिका छुटकी, मान्या, और अपने मम्मी पापा के साथ वहाँ के लिये निकल गयी। समर भी उनके साथ ही था। सभी ने गढ वाले महाराज की आरती की। और निहारिका की मम्मी ने अपनी मन्नत पूरी करते हुए गढ वाले महाराज का शुक्रिया अदा किया और कुंवर से बातचीत करते हुए उन्होने समर को अपने घर आने का निमंत्रण दिया। उन्होने समर से विदा ली और वहाँ से वापस जाने लगे। जाते हुए निहारिका ने समर से मिलते हुए बोली – हमे उम्मीद है आपसे जल्द ही मुलाकात होगी कुंवर समरजीतसिन्ह। वह हल्की सी मुकुराहट होठों पर रख वहाँ से निकल गयी। कुंवर समरजीत अपने चेहरे पर चिर परिचित मुस्कुराहट रखते हुए मन ही मन दोहराये – “बहुत जल्द”।

एक सुहानी शाम का धुंधलका बन जाओ।
ख्वाहिशो के पन्ने हैं खाली दिलो के
ठहर कर जरा तुम एक अक्स बन जाओ।
सिफारिशे हैं हर गुजरते लम्हे की
रात के इन अंधेरो का तुम सवेरा बन जाओ।
एक सुहानी शाम का धुंधलका बन जाओ
एक रूहानी इश्क का तुम फ़लसफ़ा बन जाओ।

समाप्त...

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15 Comments

madhura

21-Mar-2023 01:24 PM

nnnnnnnnnnnnnnice

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shweta soni

30-Jul-2022 08:06 PM

Amezing

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Renu

19-Jul-2022 11:02 AM

सच में, कहानियां पढ़ने का शौक तो हमे पहले से ही था पर आपकी कहानी पढ़कर ज्यादा गहरा हो गया 😇आपका तहदिल से शुक्रिया जो आपने इतनी लाजवाब कहानी हम सभी के लिए लिखी 👍👍💐💐 बहुत बहुत धन्यवाद आपका 🙏🙏

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